साथी हर कदम वंदेमातरम


हो रही सुबह
छट रहा धुआँ
जग रहा  युवा
चलते साथ हम
वंदेमातरम वंदेमातरम


भाषा भेद ना
जाती है कहा
दूरी अब मिटा
साथी हर कदम
वंदेमातरम वंदेमातरम


पंख खोल ले
स्वास यू भरो
मै से हम करे
उड़ना है धरम
वंदेमातरम वंदेमातरम


नभ हद में हो
यू आगे बढ़ो
जिद पूरी करो
टूटे हर भरम
वंदेमातरम वंदेमातरम


धूप न लगे
चूल्हा हर जले
अब रौशनी करे  
न आँसू ना हो गम
वंदेमातरम वंदेमातरम


खेले हर खुशी
जाँच कर नहीं
कोख की कभी
ले ये अब कसम
वंदेमातरम वंदेमातरम


गाँव भी बढ़े
शहर भी रहे
हक को हक मिले
रहे कैसे कोई कम
वंदेमातरम वंदेमातरम


: शशिप्रकाश सैनी

Comments

  1. ye kavita ek sapna dikhati hai jiske pura hone ki ummeed hum sabhi karte hain ek aisa bharat jahan koi bhed bhav nahin hoga,kanya brund hatya band hogi,sabhi jati saman hongi.

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