एक मुट्ठी रेत की





जमीं अब सरहदों में है
आसमां मेरी हदों में है
नदिया बांध सकता हूँ मैं 
चाँद कदमो में है

जो तुने बनाई थी दुनिया 
आज मैंने जीत ली 
मौत इशारे पे मेरे 
पैरों में मेरे जिंदगी 

खुदा होने लगा हूँ 
बंदे करेंगे बंदगी 
एक हाथ रखता हूँ मौत 
दूजे में भरी है जिंदगी 

रातो को दिन किया मैंने 
इतनी भरी है रोशनी 
बाटता हूँ गम 
बाटता हूँ  खुशी 
खुदा होने लगा हूँ 
बंदे करेंगे बंदगी 

मेरे अहंकार पे 
बस उसने यही भेट दी
एक मुट्ठी रेत की 
मेरी तरफ फेंक दी

कहा उसने 
बांधलो इसे चल दो अभी
गर एक चुटकी रेत भी 
रास्ते में ना गिरे
खुदा मैं भी कहूँगा 
और मैं भी करूँगा बंदगी 

शहर जीते थे मैंने
जीते थे घर कई 
पर एक मुट्ठी रेत भी
मेरे हाथो में ना रह सकी 

खुदा होने की जिद 
उसने कइयों की दफ्न की
एक मुट्ठी रेत की 
मेरे अहं पे डाल दी 
गलतियों की सजा बराबर है दी
जिसने भी खुदा होने की हिमाकत की
उनकी कब्रों पे चड़ाता नहीं कोई 
एक मुट्ठी रेत भी 


: शशिप्रकाश सैनी


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