रंग-ए-मोहब्बत




सुबह की धुप हैं
या पहली बरसात हैं
मोहब्बत भी वही बात हैं
आभास हैं की दिल के पास हैं
पर एक दिन बादल आगे निकल जाएगा
आज बरसा हैं कल कही और बरस जाएगा
मोहब्बत हैं तो हैं
पर ये जिंदगी नहीं हैं
जिंदगी बिना इसके भी कट जाएगी
कईयो की निपटी हैं हमारी भी निपट जाएगी
फिर वही सुबह होगी
फिर गुल खिलेंगे
वो दुनिया नहीं हैं मेरे लिए
की वो नहीं होगी तो दुनिया ही मिट जाएगी
सासों की डोर तेरे पास नहीं हैं
तू जमीं नहीं हैं मेरी तू मेरा आकाश नहीं हैं

आंखे खुली तो ये सुनता रहा
हर गुल के लिए बना हैं भवंरा
पंखो को जोरो से फडफडाना हैं
की गुल ढूँढना हैं गुलिस्ता बसाना हैं
आग दे या पराग दे
या की जलता चिराग दे
किसी की आग मिटना हैं
किसी के रंग मिलना हैं
प्रीत रीत दुनिया की
हमे यही गीत गाना हैं
हैं भीड़ बहोत
पर किसी को तो अपनाना हैं
मोहब्बत चलन दुनिया का
हमें ये चलन निभाना हैं

मोहब्बत की ताकत इतनी
की दुनिया बदल जाती हैं
जहर काम ना आता
मीरा मौत के चंगुल से निकल जाती हैं
जब दर्द हो जाता हैं साँझा
कोई हीर होता हैं
कोई होता हैं राँझा
यु रहा मोहब्बत का अंदाज़
अच्छे अच्छो के बदल देती हैं मिज़ाज
फिर नहीं कोई रस्म नहीं रिवाज़
ये रहता हैं मोहब्बत का अंदाज़
अब किस्मते इतनी अच्छी नहीं
आस पास बची कोई मोहब्बत सच्ची नहीं

: शशिप्रकाश सैनी


© 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved


Protected by Copyscape Web Plagiarism Detection

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

रानी घमंडी

मै फिर आऊंगा