कोयले से हिरा होना चाहता हूँ
कोयले से हीरे होने की
जलन ढूढ़ता हूँ
दर्द ढूढ़ता हूँ
चुभन ढूढ़ता हूँ
काली घनी रात
जब हाथ को ना दिखे हाथ
मै चूल्हें टटोलता हूँ
शोले दामन पे उड़ेलता हूँ
हर रात जिंदगी जलाता हूँ
की मै कोयले से हिरा
होना चाहता हूँ
जो लकीरे पाप की
मेरे हाथो से मिटा दे
अंगारा ऐसा हो
जो हाथ के साथ
लकीरे जला दे
कालिख की लकीरे धोना चाहता हूँ
फिर से हिरा होना चाहता हूँ
कालिख अपने साथ लिए चलता हूँ
कोयला हूँ बस कालिख मलता हूँ
दिल तोड़े हैं दिल जलाए हैं
खंजर बेवफ़ाई की
कई अरमानो पे चलाए हैं
की अब जो छुएगा अपनाएगा
साथ घर ले जाएगा
बस कालिख पाएगा
कोयला हूँ
पश्च्याताप मांगता हूँ
मुझे बना दे हिरा
वो आग मांगता हूँ
दर्द चुभन मांगता हूँ
जलन मांगता हूँ
अब पापों का पतन मांगता हूँ
जो बना दे इस कोयले को हिरा
वो जतन मांगता हूँ
: शशिप्रकाश सैनी
अदभुत रचना,गहन विचार...
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