आरूश
सदियों का अंधेरा
अब हैं छट रहा
सूरज की किरण हैं
हैं आरूश जग रहा
उसके हैं सब बच्चे
क्यों हैं लड़ते
किस ने की हैं
ये दीवारे खड़ी
हैं ये किसकी गलती
अपनी हैं लकीरे
ये अपनी गलती
अपने ही जब बच्चे
आपस में मरे
किस बाप को ये अच्छा लगे
एक का करे शोषण दूसरा
तो रोता हैं वो भी
तब आंखे हैं बरसे
बरसे आस्मां
सदियों का अंधेरा
अब हैं छट रहा
सूरज की किरण हैं
हैं आरूश जग रहा
कंधे एक से हैं
सूरत एक सी
सड़के हैं समतल
हैं गढे नहीं
पूरी अब जमीं हैं
हैं पूरा आस्मां
तेरे दिल में मेरी भी जगह
तू भी मेरे दिल में बसता
तू भाई हैं मेरा मै भाई तेरा
सदियों का अंधेरा
अब हैं छट रहा
सूरज की किरण हैं
हैं आरूश जग रहा
ठंडी हैं पवन
बैहतर हैं सतह
अपने हैं पर्वत
अपनी नदिया
आ तैर के देखते
हैं जाते कहा
सूरज की किरणे
लाती रौशनी
आरूश जग चूका
अब अंधेरा नहीं
सदियों का अंधेरा
अब हैं छट रहा
: शशिप्रकाश सैनी
© 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved
this one impressed me than other 2 sir :)
ReplyDeletekeep writing :)
wishes-DEEPAK
धन्यवाद दीपक साहब
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