तू आ तो सही
मैंने ढूंढ रखी हैं जगह
तू आ तो सही
थोड़ा ठहर
छोड़ जी जंजाल दुनिया के
मेरे संग बैठ
थोड़ी कर बात
थोड़ा खिलखिला तो सही
बहुत डरे
बहुत छुपे
उसकी बूदों से हम
तरबतर होने
खुद भी निकल
हमें भी ले चल
थोड़ा हमको भी भीगा तो सही
हम पे भी चले वक़्त के फरेब
मेरे बाल भी पकने लगे
तेरी झुर्रियां भी दिखने लगी
अपना रिश्ता हैं
उम्र से परे
बस एक आवाज़ दे
हमको बुला तो सही
जो वादा मैंने तुझ से किया
आज भी निभाता हूँ
तू आज भी आई नहीं
और मै हर शाम वहीं जाता हूँ
तू आ तो सही
थोड़ा ठहर
छोड़ जी जंजाल दुनिया के
मेरे संग बैठ
थोड़ी कर बात
थोड़ा खिलखिला तो सही
बहुत डरे
बहुत छुपे
उसकी बूदों से हम
तरबतर होने
खुद भी निकल
हमें भी ले चल
थोड़ा हमको भी भीगा तो सही
हम पे भी चले वक़्त के फरेब
मेरे बाल भी पकने लगे
तेरी झुर्रियां भी दिखने लगी
अपना रिश्ता हैं
उम्र से परे
बस एक आवाज़ दे
हमको बुला तो सही
जो वादा मैंने तुझ से किया
आज भी निभाता हूँ
तू आज भी आई नहीं
और मै हर शाम वहीं जाता हूँ
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
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Bahut sundar...
ReplyDeleteधन्यवाद सरू जी
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