जीना चाहते है फिर से बचपन की तरह
हम से अब नहीं मिलता वो बचपन की तरह
इतने बड़े जो हो गए हैं
हम भी रूठे रहते हैं उससे बड़प्पन की तरह
एक जमाना था उसका दर था
हमारे घर के आगन की तरह
जिन ईटो पे बैठ बाते किया करते थे
वो ईटे जाने कब हमारे दरमियान दीवार हो गयी
अब रोकती हैं हमे बंधन की तरह
जानते हैं तुम भी मिलना चाहते हो
हम भी आना चाहते हैं
फिर भी तने हैं हम अकड़ी गर्दन की तरह
कोई चीज़ तेरी मेरी न थी सब हमारी थी
आज यूँ हैं की खुशी क्या गम में भी
दूर रखते हो हमे दुश्मन की तरह
बहुत जी लिए हम बड़े हो के बड़प्पन की तरह
कोई लौटा दे हमारे दोस्त
की हम हँसना
और जीना चाहते हैं फिर से बचपन की तरह
: शशिप्रकाश सैनी
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made me nostalgic
ReplyDeleteमेरे कविता के भाव आप तक पहुचे
Deleteकविता लिखना सार्थक रहा
और इसे मै सराहना समझते हुए
आभार प्रकट करता हू