ठंडी बड़ी घमंडी



कमरों में ही पड़े रहे
न आश जगाए ठंडी
बिस्तर की लाचारी देखे
तो घुस जाए ठंडी
मौके की ताक में बैठी
ठिठुरन ले आए ठंडी
ठंडी बड़ी घमंडी


गुसलखाने में गुड गुड गोते
पानी की मनमानी
हर दिन वही कहानी
तीन दिन में एक बार
हफ्ते में होते दो
पानी से जी रोज रोज
न लड़ना है मुझकों
चाहे जो समझों
कांप कांप के कितना कांपे
खूब डराए ठंडी
ठंडी बड़ी घमंडी

महल में लाइट बत्ती
हीटर है संपत्ति
ठंडी की न चल पाए
न पास ही जाए ठंडी
न हीटर न बत्ती
न ठिठुरन को आपत्ति
गर निर्धन दम्पत्ति
झोपड़ जो ये देखो तो
हर झोपड़ में जाए
गलन गलन हर कोना
हर कोने में ठंडी
ठंडी बड़ी घमंडी

अकडो जिससे जब चाहो
ठंडी से न अकडो
ठंडी ठिठुरन दे जाए
अकड़न देगी ठंडी
कांप कांप के हालत भाई
हो जाएगी गंदी
ठंडी बड़ी घमंडी


: शशिप्रकाश सैनी 

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Comments

  1. Hi Shashi,

    Perfectly apt for the winter season enveloping the country at the present moment. Loved it :)

    P.S. Do check out & vote for my entry for Get Published.

    Regards

    Jay
    My Blog | My Entry to Indiblogger Get Published

    ReplyDelete

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