न पंख बचे न पखेरू
न पंख बचे न पखेरू
मै पिंजरा प्रेम बना बैठा
अब अंखिया कैसे फेरु
उससे न अब ध्यान हटे
न दिन कटता न रात कटे
जागू तो उसको चाहू
और सपनो में भी हेरू
न पंख बचे न पखेरू
गर पिंजरा उसने खोल दिया
उड़जा ऐसा बोल दिया
बंधन प्रेम बंधा है ऐसा
उड़ के कहा मै जाऊ
और जो उड़ जाऊ भाप मै बन के
बादल बन के घेरु
न पंख बचे न पखेरू
: शशिप्रकाश सैनी
apki ab tak padhi kavitaon mein sabse shresht
ReplyDeleteधन्यवाद सिफर
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