ठोकर में दुनिया
ठोकर में दुनिया
बोतल में दारु
नशा घमंडी
कैसे उतारू
दौलत नशा है
शोहरत नशा है
जिसको चढ़ा है
वही जानता है
रिश्ते हैं रौंदे
रौंदे घरौंदे
घर को उजाड़े
बंजर बना दे
हवा में उठाए
जमीं पे गिराए
मुट्ठी में इसकी
न कुछ भी समाए
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
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bahut khoob sir true money has made a lot of people bad.. they have become so egoistic..
ReplyDeleteBikram
धन्यवाद बिक्रम जी
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