अंतिम उजाला



जो किलकारी से शुरू हुई 
वो सांस की डोरी टूट गई 
जीवन था क्षण भर का साथ
ये दुनिया तुझसे रूठ गई 


सब आडंबर सब स्वारथ को
राख यही हो जाना है
इस अंतिम ज्वाला से होकर 
उस पार अकेले जाना है 


देखा सब इन आँखों ने  
रंग बदलती दुनिया देखी
रिश्ते नाते सब झूठे है 
सच्चा है शमशान बहोत 


आना जाना लगा रहेगा
हर रात यहाँ पे भारी है 
आज इसे कंधों पे लाए
कल तेरी भी बारी है


आंसू हंसी प्यार का गठ्ठर
जितना हो उतना कम रखकर
उस पार कुछ मालूम नहीं 
कितना है चलना बाकी 


जन्तू प्रेम बढ़ा बैठा है 
वस्तु प्रेम बहोत है तुझको 
आग सत्य है राख सत्य है 
बाकी सब कुछ मिथ्या है 


किस पल आए बोल बुलावा 
किस पल हमको जाना हो
इस पल जो तू देख रहा है 
शायद यही अंतिम उजाला हो 


: शशिप्रकाश सैनी 


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