आकांक्षा और शशि की पहली जुगलबंदी पेशकश

हजरात हजरात हजरात 
आपके सामने पेश है 
आकांक्षा और शशि की पहली जुगलबंदी पेशकश

हम बजरबट्टू थोड़े से मुरख
इस कविता में आकांक्षा जी पूरक



आकांक्षा जी का ब्लॉग : Direct दिल से 
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“लिखे हुए तीन महीने हो गए 
जंग लग गई है” 
तो मिलके काफी या चाय से भिगोया जाए 
जंग को धोया जाए 

“काफी या चाय नहीं 
कोक की चुस्की”

गर्मी हैं ना सही बात है 
फिर भाड़ में जाए काफी 
चाय को आग में झोक 
मैं भी पियूँगा कोक 

“लस्सी भी चलेगी वैसे 
गर ज्यादा खर्च करने हो पैसे”
हाँ देशी उपाय 
गर्मी भगाए 

“कविता हो गई ये तो”
सोचिए जब बैठेंगे साथ 
तो क्या होगी बात 
“क्या बात क्या बात”

हो गई जुगलबंदी की शुरुआत
“फूटेंगी कविताएँ बनेगी बिगड़ी बात”
मौसम भी हो जाए मेहरबान 
कर दे बरसात 

“और हो जाए चाय पकौडो का साथ”
कितने मिलते है हमारे ख़यालात 
“जैसे मिलेंगे जमीं आसमां, बहाने बरसात”
सोंधी माटी की महक के साथ 

“कविताएँ करेंगे हम दिन रात” 
भरेंगे हर शब्द में ज़ज्बात
“धरती का हृदय पिघलाएगी बरसात”

प्यासे होठों को राहत 
देगी प्यार की पुचकार
“और गर्मी की आखिरकार 
होगी हार”

उम्मीद बादलों से यही 
कि बरसाएं प्यार 
“पानी हो जाए कविता 
झूमे संसार”

हर छंद हर दोहा 
करे बूंदों की बौछार
“बूंदें हैं छोटी छोटी 
समाया है प्यार”

प्यार का प्याला भर जाए 
जब बरसे बूंदें हजार
“कभी इकरार कभी इनकार
न मान हार”
लकीरों में छुपा है प्यार 
बस ढूंढने की दरकार 

“मिलेगा बारिश की बूंद में 
चाय की चुस्की में 
या आसमानी इंद्रधनुष में”
गढा है ईश्वर ने 
हर जगह हर ओर 
प्रेम बीज हर मनुष में

तो तय रहा 
न चाय न कोक पे 
हम टकराएँगे 
लस्सी की रोक पे 

“लस्सी से नींद आएगी 
क्या कविता हो पाएगी”
हम बहुत बातुनी है सोने नहीं देंगे 
आप मिलिए तो सही बस कविता करेंगे 

“मिलेंगे मिलेंगे बातें बनेगी
देखेंगे कहा को गाड़ी चलेगी”
गाड़ी है धक्का लगेगा 
हारन बजेगा 
बस कविता ईंधन मिलता रहे 
सफर कटता चलेगा 

“धक्के से चल जाए तब भी सही 
शब्दावली सज जाए तो वाह-वाही”
आपकी संगत हमें भाइ
दुनिया करे ना करे वाह-वाही

“शुक्रिया आपने जो ऐसा कहा
वरना हम कहा और आप कहा”
हम भी यहीं और आप भी यहीं 
खुद देखिए जुगलबंदी क्या खूब हुई 

“भोर भए कविता फुट पड़ी 
और सोचा था की अकाल पड़ा है”
मन कवि का भरा घड़ा है 
कौन कहता है कि खाली पड़ा है 

“मन की तो मन ही जाने
कभी आए कवि पे 
कभी कविता पे”
मन गहरा है 
कान लगा सुनो तो जरा 
क्या कह रा है 

“सुन रहा है राग मल्हार
लेकिन बारिश का कहा है आसार”
आए जाए, चला जाए, ऐसा साथ क्या साथ 
साथ वाही जो हाथ पकड़ निभाएं बीच मजधार 

“साथ चले तो बात बने 
दिन बीते रात कटे”
दिल की दिल में एक ही इच्छा 
इक दूजे का हम नाम रटे

“नाम में क्या रखा है 
कविता करे और काम बने”
मैं और तुम में कहाँ हैं कविता 
मैं और तुम हम हो जाए
तो कविता से क्या कम हो जाए

“सुर्ख पत्तों पे बारिश की बूंदें
जैसे मन में कविता की लहरें”
कुछ हंस लें कुछ रो लें
कविता फिरो लें 
आओ बूंद संजो लें

“बूंदें संजो के बनेगा सागर 
कविता संजो के होंगे उजागर”
जीवन की गागर न खाली रहेगी
कभी होली कभी दिवाली रहेगी

“होली दिवाली रहेगी तभी
शब्द नाराज ना हो कभी”
नाराज हुए तो माना लेंगे
शब्दों से अपनापन बना लेंगे

“मुश्किल से ढूंढे है शब्द आज
जीवन खाता जा रहा था 
सब काम काज”
ढूंढना कहाँ तुम्हारे ही पास था
तुम्हारी हँसी और मुस्कान भा गए 
तुमने पुकारा सब शब्द आगए

“छुपे थे कही वो आपके आसपास
जुगलबंदी हुई तो निकले बन के खास”
शब्दों को इस बात का एहसास तो है 
हमारी पहली जुगलबंदी खास तो है 

अब मुझे लगता है यहाँ रुका जाए
“Good Morning या Good Night क्या कहा जाए”

यही कहा जाए सब फिर मिलेंगे 
कोई ताल छेडेंगे
कविता का कमाल छेडेंगे 
“जल्दी ही मुलाकात होगी
कविता कागज कलम के साथ होगी”

आपके मुह में लस्सी 
वाह क्या बात होगी
“लस्सी से शुरू, लस्सी से खतम
जुगलबंदी हुई नरम-गरम”

देखिए बात बात में 
ये लंबी कविता रच डाली
लस्सी ने पूरी कविता संभाली

“लस्सी के बिना अब नींद आजाएगी 
मन हुआ है शांत, कविता मिल गई”


:  आकांक्षा  और शशिप्रकाश


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