सामर्थ्य REVISITED

मेरी हद क्या हैं
मेरी उड़ान क्या
जब उड़ना चाहूँ
सरहद हैं क्या

गीर गीर के उठता रहा हू मै
अब डरता नहीं हूँ गिरने से
रास्ते में तुफा (तुफान) आए तो आए
घबराता नहीं हू मिलने से

मेरी हद क्या हैं
मेरी उड़ान क्या

हर चोट सिने पे ली हैं
पीठ पे नहीं मिलेंगे निशा (निशान)
मुसीबतों से भागू
ऐसा नहीं मै इंसा (इंसान)

मेरी हद क्या हैं
मेरी उड़ान क्या

मेरी अपनी हैं सरते
मेरे अपने उसूल
एक उसके दर के अलावा
नहीं कही झुकना कुबूल

मेरी हद क्या हैं
मेरी उड़ान क्या
जब उड़ना चाहू
सरहद है क्या

: शशिप्रकाश सैनी

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