मुखौटा हटाओ



भीड़ में सब मुखौटे हैं
इंसा कहा हैं
जिसकी सूरत पे सीरत दिखे
वो चेहरा कहा हैं


खिड़किया यूँ बंद करली हैं
की हम खोलते ही नहीं
दुनिया से करते हैं बात
पड़ोसियों से बोलते ही नहीं
न बगल में खुशी न मातम का पता
पर ये मालूम दुनिया में क्या घटा


कमरे बंद रखने से सिर्फ सडन होगी
खिड़किया खोलोगे तो हवा आएगी
कोई महक कोई चहक साथ लाएगी
तुम मुखौटा उतारोगे तब तो वो सूरत दिखाएगी


हँसो मुस्कुराओ और चिल्लाओ
अगर हिम्मत हैं तो मुखौटा हटाओ
दिल के भाव को चेहरे तक आने दो
देनेवाले ने दिया हैं बड़े प्यार से
इसको भी किस्मत आजमाने दो


कोशिशे करने से टूट जाती हैं बेडियां भी
थोड़ी कोशिश करो और मुखौटा हटाओ


: शशिप्रकाश सैनी


//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
यहाँ Free ebook में उपलब्ध 

Comments

  1. Very true, Shashi. We are all so intent on putting up faces to the world that we don't see what we are missing in the real world. Internet zindabad!

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

रानी घमंडी

मै फिर आऊंगा