तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है



तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता हैं
जो आइने हमने बनाए हैं वो अलग बात कहे
पर उसकी तस्वीर में तुभी मुझसा दीखता हैं
तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता हैं

वो अपने नियम शख्स दर शख्स नहीं बदलता हैं
उसके तराजू में सब एकसा तुलता हैं
भेद करे तो करे कैसे वो
न तो उसको तन दीखता हैं
न धन दीखता हैं
उसके दर्पण में बस मन दीखता हैं
तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता हैं

:शशिप्रकाश सैनी

© 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved


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Comments

  1. read u after a long time..bahut khoob likha aap ne..v beautiful lines indeed

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  2. Replies
    1. धन्यवाद विनय जी

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    2. tere hi pratibimb liye ,
      main nikla tha path parr nirbhay

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