फेंक दे ढेला अंतरमन में
अनमने हैं ख्वाब सारे अनमनी हैं सांसें दुनियादारी हाथ लगी है कदमों को है फासें फेंक दे ढेला अंतरमन में अब की शोर मचा दें मध्म मध्म धड़कें कितना ले ऊंची नीची सांसें रात सुबह आलिंगन होगा अब की चल दे भोर देखने बरखा फिर से गीत गा रही चल जंगल में मोर देखने मन जंगल होने दो बनते हो बाग बगीचा क्यों जल कल कल होने दो पोखर में खुद को घींचा क्यों उस ओर तो खतरा है एक अंधकार में जाने का इस ओर दिलासा है जीते जी मर जाने का # Sainiऊवाच