हम दिल को अनसुना करते गए



दिल के सवालों का कोई जवाब न था 
हम दिल को अनसुना करते गए

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कुछ यूँ है जिंदगानी
न ख्वाब न कहानी 
न ठोर न ठिकाना 
मुकद्दर है बहे जाना 
इश्क़ की लकीरें 
हाथों में बहुत ढूंढी
जो था ही नहीं 
उसे ढूंढते हैं 
हम भी बड़े हैं जाहिल
होश बना दुश्मन 
मयखाना मेरा साहिल

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जब जिस्म चाहेगा तो हार जाए सैनी 
रूहानियात की चाह मुझे पागल बनाएँ जाती है

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प्रेम की परिधि में 
बंधने को आतुर मन
वर्ष बीते जा रहे हैं 
स्पर्श के अभाव में 
हृदय कब से प्रार्थी है 
वरदान तुम न दे सको तो
शुष्क होने का अभिशाप दे दो


#Sainiऊवाच

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