नींद के आगोश में दुनिया है
नींद के आगोश में दुनिया है
और कुछ को सपने सोने नहीं देते
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पुरानी रूकावटें हटाई
तो नई से दोस्ती कर ली
बहाने बंधने के ढूंढता रहता हूँ
मैं चाह के भी हवा हो नहीं पाता
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नशा हजारों का
कुछ सौ का इलाज भी महंगा लगे
खुद से इतनी बेदिली क्यों
सैनी लौट चलो ये आग कुछ नहीं देगी
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कवि हुआ है ढोंगी
अब ढोंग करेगी कविता
सम्मानों की लीपापोती
स्मृति चिह्नों का आडंबर
भाव की गठरी नहीं खुलेगी
ढोंग करा कर ढोंग बिकेगी
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वर्तमान था पड़ा निढ़ाल
वर्तमान था पड़ा निढ़ाल
जकड़े उसको भूतकाल
अब भविष्य की बेड़ी बनता
वर्तमान हो रहा भूतकाल
#Sainiऊवाच
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