पैबंद


भूरी कमीज पे नीला पैबंद
कोई रईसी तो नहीं हैं
फिर भी देखो मुस्कुराता हैं
शान से चलता हैं, अपनी अकड़ पे
आखिर नीला उसका पसंदीदा रंग जो ठहरा


हां मानता हूँ, अमीर होना थोड़ा मुश्किल हैं,
जिस राह पे मैं हूँ
कल को,
हो सकता हैं, नयी कमीज भी न ला पाउँगा
पर पैबंद,
पैबंद तो अपनी पसंद का लगा सकता हूँ,
पुरानी कमीज पे
मेरा पैबंद मेरी कविताएँ हैं


: शशिप्रकाश सैनी

//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
यहाँ Free ebook में उपलब्ध 

Comments

Popular posts from this blog

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

रानी घमंडी