सर्द रातो से निकाले

(नवगीत मे मेरा प्रथम प्रयास )

चाह मुझको
उस किरण की
जो बदलो से उभारे
सर्द रातो से निकाले

मै अकेला ही रहा था
साथ ये दिल मांगता है
उम्र की अपनी तड़प है
जिस्म भी कुछ चाहता है
आग पानी जो बना दे
चल हवा मुझको बुझाले

सर्द रातो से निकाले

भीड़ में मै खो न जाऊ
है परत पे बिम्ब ऐसे
आँख भाए दिल कहा है
सच सतह की जानू कैसे
मांझी न मझधार में हू
सब करू तेरे हवाले

सर्द रातो से निकाले

: शशिप्रकाश सैनी

Comments

  1. Hi Shashi,

    The poem has beautiful lines, however, I do not know much about Navgeet. What is it all about?

    Happy New Year to you :)

    Regards

    Jay
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    Replies
    1. धन्यवाद जय जी
      आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

      Delete
  2. बेहतरीन.....
    लिखना जारी रखें...बहुत बढ़िया नवगीत बन पड़ा है.
    :-)
    बधाई.
    अनु

    ReplyDelete

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