सर्द रातो से निकाले
(नवगीत मे मेरा प्रथम प्रयास )
चाह मुझको
चाह मुझको
उस किरण की
जो बदलो से उभारे
सर्द रातो से निकाले
मै अकेला ही रहा था
साथ ये दिल मांगता है
उम्र की अपनी तड़प है
जिस्म भी कुछ चाहता है
आग पानी जो बना दे
चल हवा मुझको बुझाले
सर्द रातो से निकाले
भीड़ में मै खो न जाऊ
है परत पे बिम्ब ऐसे
आँख भाए दिल कहा है
सच सतह की जानू कैसे
मांझी न मझधार में हू
सब करू तेरे हवाले
सर्द रातो से निकाले
: शशिप्रकाश सैनी
Hi Shashi,
ReplyDeleteThe poem has beautiful lines, however, I do not know much about Navgeet. What is it all about?
Happy New Year to you :)
Regards
Jay
My Blog | My FB Page
धन्यवाद जय जी
Deleteआपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
बेहतरीन.....
ReplyDeleteलिखना जारी रखें...बहुत बढ़िया नवगीत बन पड़ा है.
:-)
बधाई.
अनु
धन्यवाद अनु जी
Delete