मै फिर आऊंगा
बीती जिंदगी मैं फिर जीना चाहता हूँ,
कैसे मैं बच्चा रहा
कैसे हुआ जवान,
वो दादी की अठन्नियां
वो नानी के पकवान.
तब बड़प्पन की बीमारियाँ न थी
क्या खूब जिंदगी थी,
किसी कोने में दबे रहने दो
ख्वाब मेरे
मैं फिर आऊंगा,
जिंदगी जब
पड़ाव दर पड़ाव छुटने लगती है
मैं लौटना चाहता हूँ
उसी कमरे में
समय जहाँ भागता नहीं.
दीवार पे सीलन
जाले है मकड़ी के,
किसको है फुर्सत
इस तरफ देखे.
समझदारी की परत पे
एक छोटी सी सनक है,
जो दुनिया के लिए बेकार है
वो मेरी यादे है
मेरा हक है.
एक टोपी है छोटी सी
रंग से भूरी है ,
मगर यादे सुनहरी है
पापा कलकत्ता से लाए थे.
वो टोबो साईकिल
जो मेरा ट्रक्टर हुआ करती थी,
ख्वाबो लगते थे पर
आसमानों उड़ा करती थी .
टुकड़ा टुकड़ा है
पर मेरा खजाना है भरा
धूल हटाने की देर है,
मैं फिर रम जाऊंगा
घंटो ख्वाबो में रहूँगा
वही धुन गुनगुनाऊँगा.
ReplyDeleteकल 17/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
धन्यवाद यशवंत जी
Deleteदिल छू लिया आपकी कविता ने.
ReplyDeleteधन्यवाद निहार जी
Deleteबहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आपने, दिल को छू गई । बचपन की कितनी ही यादें सामने आ गईं |
ReplyDeleteधन्यवाद निशा जी
Deleteबचपन के दिन होते ही सुन्दर और मस्ती भरे..
ReplyDeleteबेफिक्री के दिन...
बहुत सुन्दर रचना...
:-)
धन्यवाद रीना जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना>>>>>>>>>
ReplyDelete:-)मै फिर रम जाऊंगा
घंटो ख्वाबो में रहूँगा
वही धुन गुनगुनाउंगा
धन्यवाद मधु जी
Deleteबहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना .
..
धन्यवाद सुषमा जी
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