काशी ना छोड़ी जाए




जितना जिए हम इसको
उतना ये दिल में आए
धड़कन में धड़के मेरे
सांसो में ये घुल जाए
काशी ना छोड़ी जाए


घाटों की सुबह हो के
बनके हवा के झोंकें
हमने जी काशी देखी
नैया के चप्पू हो के
गंगा में डूबकी गोते
तैरे जहां पे मन तो
ठहरे वहाँ पे मन तो


तुलसी पे तुलसी होना
चेत कबूतर दाना
लहरों की भाषा जानी
मन के मुताबिक मैंने
जम के जी काशी देखी


दिन में था घाटो का मैं
शामों गली का हो के
स्वाद बटोरे कितनें
चाट चटोरे कितनें


एक ठंडाई गोली
पूरी गले से होली
रंगीन चस्का चख के
काशी भरे हम इतनी
काशी जिए हम इतनी
जाए तो ले के जाए
काशी ना छोड़ी जाए


कविता डुबोई काशी
शब्दों फिरोई काशी
फोटो भी होई काशी
पहर दो पहर ये क्या है
हर पल बटोरी काशी
काशी ना छोड़ी जाए


जो जिले जरा सी
उनसे तो ना छोड़ी जाए
और जो तरबतर है
काशी डूबें है
काशी घुलें है
उनसे कैसे छोड़ी जाए


तन को है रोटी कपड़ा
रोटी जहाँ ले जाए
मन तो बसा है काशी
काशी ना छोड़ी जाए



: शशिप्रकाश सैनी


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Comments

  1. beautiful composition, I have never been to Kashi. But I am afraid I will not find it as I dream it to be!
    mein bharam nahin todna chahati!

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    Replies
    1. धन्यवाद मीनाक्षी जी

      Delete

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