धड़कने को कोई दिल्लगी दे दे
ये आग खाक करेगी
ना पास लाओ इसे
बस झुलसने का शौक़ मुझे
ना जलाओ मुझे
दर्द-ए-दिल
किसी नशे से ना बहकने वाला
चाहे
एक घुट दो जाम पूरा मैखाना
पीला दे
जज्बाती आदमी हू
इन्हीं जज्बातों का सिला है
दिल जब भी धड़का
इश्क-ए-गम मिला है
जब वक्त लगाता मरहम
होता है नशा कम
खुदा धड़कने को कोई दिल्लगी
दे दे
नशा रख वही बस बोतल नयी दे
दे
दिन-ब-दिन पिए
और दुनिया शराबी कहें
इससें तो अच्छा दिल टूटे
और दिल-ए-खराबी रहे
: शशिप्रकाश सैनी
दिल जब भी धड़का
ReplyDeleteइश्क-ए-गम मिला है
Wah..!
धन्यवाद ग़ज़ला जी
DeleteWah Shashi! kyaa kah diyaa aapne...
ReplyDeleteदिन-ब-दिन पिए
और दुनिया शराबी कहें
इससें तो अच्छा दिल टूटे
और दिल-ए-खराबी रहे...bhai bahut khoob!!
बहुत सुंदर रचनाएं ..
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
DeleteLoved it.
ReplyDeleteधन्यवाद सुभोरूप जी
Delete" खुदा धड़कने को कोई दिल्लगी दे दे
ReplyDeleteनशा रख वही बस बोतल नयी दे दे"
Kya baat hai !!!
Bahut hi badhiya !!!
Shashi ji aaj aapne ek fan banaa liya hai apni poetry ka !!
Happy Blogging !!!