इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो
न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ महेनत, लगन, शिद्दत, इन्हीं आदतों में हूँ न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ दिन रुसवाई, रात तनहाई में हूँ दो वक्त की रोटी के लिए बस खटतारहा हूँ और ईनाम में मिली तोहमतें हैं लोग यहाँ, मुझे बुराइयों में गिनते हैं मेरा घर, मेरी टैक्सी, मेरा ठेला, जला देंगे जब जी में आए, थप्पड़ लगा देंगे नोटों की गट्ठर, अगर होती मेरे सर तो नहीं जलता मेरा घर बिकाऊ हैं भीड़, बिकाऊ हैं पत्थर होनी चाहिए बस, नोटों की गट्ठर कहा से लाए नोटों की गट्ठर की अब तक, मैं ईमान में हूँ खाकी, खादी, बिक चुकी हैं इनकी नज़रों में, मैं इंसान नहीं हूँ क्योंकि आज भी ईमान में हूँ जो दो वक्त की रोटी के लिए पीसता हो दिन रात वो बदले में क्या देगा उसका तो घर ही जलेगा बंधू मित्र आना नहीं यहाँ ये स्वप्न नगरी नहीं छलावा हैं मशीन इतना हुए की न सपने हैं न इच्छा हैं कभी कभी भूल जाते हैं की हम भी जिन्दा हैं जब से इस शहर की राजनीति हुआ हूँ मैं सब सहमति से नोचे हैं दुर्गति हुआ हूँ मैं मुझे मारना भी वोट हैं पुचकारना भी वोट ह
bahut badhiya likha hai Shashi!
ReplyDeletedhanywaad amit ji
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