ना का डर हां से हल्का है




जब तक इज्ज़त की फ़िक्र थी
मै बोलता न था
कभी हौसला कम था
कभी फासला था बहोत

कभी आवाज़ की कशिश थी
कभी नज़रों में था नशा
फिर जो नज़र का असर होने लगा
होश मै खोने लगा
नशा मोहब्बत का सर पे तारी हो गया
हौसला इज्ज़त से भारी हो गया

ना का डर हां से हल्का है
मोहब्बत जाम है और जाम छलका है
फैसले की चाह में
हौसला बड़ाया है
पिंजरे तोड़ ये परिंदा उड़ने आया है
एक हां की ललक में हौसला बड़ाया है

एक ना के डर से अब तक खुद को आजमाया ना था
सीने में प्यार था दुनिया को दिखाया ना था
हां से हासिल होगा
ना से फासला होगा
होने को वही होगा
जो किस्मत में लिखा होगा
कलमकार हू कलम चलाता रहूँगा
ज़िंदगी की भट्टी पे जज्बात जलाता रहूँगा

:शशिप्रकाश सैनी


Comments

  1. कलमकार हू कलम चलता रहूँगा
    ज़िंदगी की भट्टी पे जज्बात जलाता रहूँगा...
    bahut khoob,aap ki kalam sadaiv yu'n hi chalti rahe....yahi kaamna hai

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद इंदु जी

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

रानी घमंडी