राह मन की
राह
मन की
मुश्किल बहोत
फिर क्यों डटा हुआ?
मोड़
सन्नाटे से भरे
भय चेहरे से
छलकता हुआ
मंजिल दूर
पाँव जख्मी
निशान खून के
पर चाहता था
अब पैर भी नहीं
चलोगे कैसे ?
कोने में टूटी सी
वो चीज क्या है ?
अच्छा !
तुम्हारा हौसला है
तुम बहादुर थे ना
जिद वाले जिद्दी
फिर टूट क्यों गए
उठो और लड़ों
क्या महादेव में आस्था
बस नाम भर की है
कुछ सीखा नहीं क्या ?
हलाहल पी कर
जीना पड़ता है
अमृत
हलाहल बाद ही निकलता है
पहले हलाहल पियो तो सही
भागते क्यों हो
: शशिप्रकाश सैनी
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