मैं न बदलूँ अगर तो
मैं न बदलूँ अगर तो
वो हैं कहती ढीट हो तुम
और जो चाहूँ बदलना
मोम की भाँति बने तुम
जो झुके वो रीढ़ कैसी
अब की फंसी जान सांसत
धार पे मुझको चलाएँ
हाँ मैं कह दू, तो फंसू मैं
ना मैं कर दू, तो है आफत
मुझे कुछ अब सुझता ना
जब मिले थे बार पहली
हर अदा में प्यार था जी
रंग कुछ यूँ है बदला
जो शब्द कभी चाशनी थे
आज नीम की कौड़ियाँ है
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