मैं न बदलूँ अगर तो


मैं न बदलूँ अगर तो
वो हैं कहती ढीट हो तुम
और जो चाहूँ बदलना
मोम की भाँति बने तुम
जो झुके वो रीढ़ कैसी


अब की फंसी जान सांसत
धार पे मुझको चलाएँ
हाँ मैं कह दू, तो फंसू मैं
ना मैं कर दू, तो है आफत
मुझे कुछ अब सुझता ना


जब मिले थे बार पहली
हर अदा में प्यार था जी
रंग कुछ यूँ है बदला
जो शब्द कभी चाशनी थे 
आज नीम की कौड़ियाँ है




: शशिप्रकाश सैनी


//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
यहाँ Free ebook में उपलब्ध

Comments

Popular posts from this blog

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

रानी घमंडी