बहना छोटी, बड़ी रे हिम्मत
बहुत दिनों से पीड़ा थी
पीड़ा मन में आन धसी
हार रहा था खुद से मैं
युद्ध जगत से बाकी था
जिस पथ पर मैं लड़ता हूँ
वो पथ मेरा हैं भी क्या ?
दुविधा मन में आन बसी
जग हंसता घनघोर हँसी
हाथ कांपते, कदम कांपते
काँप रहा था थर थर मैं
बहना छोटी बड़ी रे हिम्मत
डर अपना सब खोल दिया
बहाना छोटी डोल रही
दूरभाष पे बोल रही
मंतर हिम्मत फुक रही
बीच राह में छोड़ नहीं
हंसता जग तो हंसने दे
ऐसी भी क्या घनघोर हँसी
तुझको हंसनी पुरजोर हँसी
अब की कर झकझोर हँसी
: शशिप्रकाश सैनी
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