ख्वाब मेरा चना है
हजारों हैं लाखों हैं करोड़ों हैं
कोई सत्तू कोई बेसन
कोई पकौड़ों के लिए बना है
फिर क्यों मुझे मना है
मैंने भी अपना रास्ता चुना है
भूख हर रात आती है
बहुत सताती है
पहली बार
मेरे लिए कोई ठना है
हर भूख का जवाब मेरा चना है
मानता हूँ तंगहाली है
बटुआ मेरा खाली है
पर जमीन तो उपजाऊ है
ख्वाब बोना कहाँ मना है
मेरा रूबाब मेरा चना है
पहले पानी माटी, हवा
फिर रोशनी लगेगी
चुटकी में
कौन पेड़ बना है
ख्वाब मेरा चना है
पहले भी टूट चुका है भ्रम
दुनिया का
कि ख्वाब सच नहीं होते
क्या तील का ताड़ सुना है
इस बार मेरा चना है
एक सत्तू पराठे में चने गए दस
दुनिया ने खाया पिया, निपटाया
किसने गाया यश,
एक किलो लड्डू में हजार गए
तेरी किसे परवाह
लोग बीना डकार मार गए
दुनिया की मानता
तो आज भाड़ में होता
भुजाइन की
बेसन सत्तू
क्या क्या न बनता
नमी जिंदगी की, भट्टी चुस लेती
मैं चना न होता
मैं अंकुरित होने लगा हूँ
अब पौधा बन पनपना है
जीना हर ख्वाब, हर सपना है
धूप सोखूंगा, हवाओं से जुझूंगा
चना हूँ बदले में चना ही दूंगा
नकल नहीं, मशीनी भी नहीं
अपना रंग अपना ढंग चुना है
चाहे दुनिया कहे
जाने किस माटी का बना है
मेरी जीद मेरा ख्वाब
मेरा जवाब चना है
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
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बेहद बेहतरीन रचना ..वाह कितनी बारिक नजर और अहसास को आपने शब्दों का जामा पहनाया है... उम्दा
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