काश कि



अपने ही घर में 
दर्द बो गया हूँ 
माँ बाप की आँखों में
आँसू हो गया हूँ


काश 
मैं लिखता नहीं
ये रोग हमे लगता नहीं


काश कि
मेरी स्कूल की किताबों से
कोई कविताओं के पन्ने फाड़ देता


काश कि 
सिलेबस में बस गणित विज्ञान 
और कॉमरस होता


काश कि
मैने सूरज का उगाना,
चिड़ियों का चहकना न पढ़ा होता


काश कि
शब्द को मैं शब्द ही रखता
भाव मिलाता नहीं


काश कि
घर में मेरे,
पापा डायरियां न लाते


काश कि
पांचवी में मैंने
पहली कविता न लिखी होती


लिखी तो लिखी
काश कि
मेरी हिम्मत यूँ न बढ़ी होती


काश 
किताबें पीछे से भरी होती 
मेरी भावनाएँ न छलकती


काश
मुझे भाव छुपाना आता


काश
मैं लिखना छोड़ पाता


काश 
बनारस ने मुझे बुलाया न होता 
और जीना सिखाया न होता


तब शायद 
मैं दूसरों की जिंदगी जी लेता
तब मैं दफ्तर जाता
बस रुपया कमाता
माँ बाप की आँखों में
आँसू तो न बोता


शायद मैं भी इंजीनियर, मैनेजर
एक अच्छा बेटा होता 
अगर
पहली बार लिखा न होता


: शशिप्रकाश सैनी


//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
यहाँ Free ebook में उपलब्ध 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

रानी घमंडी