आशाएं और भय



अपनों से बगावत की
यह वजह है
आँखों में आशाएं हैं
और भय है


हर पल एक हौसला बढता है
दूजा बिखरता है
शशि हर कदम पर
खुद से लड़ता है


आँखों में आशाएं हैं
और भय है


भाव कागज पे उतारू
तो हाथ कांप जाता है
क्या भविष्य के गर्भ में
बस कलह है


आँखों में आशाएं हैं
और भय है


रात ख़ामोशी
मुझे अच्छी लगती है
हर चढ़ता सूरज
मुझे डरता है


आँखों में आशाएं हैं
और भय है


भय ज्यादा है
आशाएं मद्धम
हाथो से भागता
समय है


आँखों में आशाएं हैं
और भय है


: शशिप्रकाश सैनी


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