हमें पे छलकीं मुस्कान नहीं


न रूठ रही न मान रही 
हमें पे छलकीं मुस्कान नहीं 
धड़कन मेरे खाते नहीं 
प्यार भरी कोई बातें नहीं 


अब तक राह आसान रही 
फिर भी रहा अकेला मैं 
आगे डगर बड़ी है मुश्किल
चाँद चांदनी कोई नहीं 
न तारे हैं झिलमिल झिलमिल
फिर कोई क्यों अब साथ चले 
मेरी झोली खाली है 
न सिक्कों की बरसात चले 


मेरी धड़कन समझें धड़कन 
दिल को मेरे कोई दिल समझें 
यह वहम कब तक पाले रखे
कठिन कठिन औ मुश्किल मुश्किल 
जीवन की हर सांस हुई
दुख की चाह करे क्या कोई ?
औ सुख देने मैं लायक नहीं 
फिर साथ कहा कोई बात कहा
धड़कन मेरी समझें कोई 
अब ऐसे हालात कहा 


कोई स्वप्न आकार न लेता 
स्वप्न छलावे सब बहालवे
उसको जो जो होना था
खाली हर वो कोना है 
जो हूँ मैं हूँ कविता मेरी 
और नहीं कोई साथ चले
चलता हूँ चलना तो चलना
रूक कर भी किसे मैं जोहूं


: शशिप्रकाश सैनी


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Comments

  1. बेहद खूबसूरत उम्दा रचना ह्रदय में बस गई, बधाई स्वीकारें

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