चल बातें होई रे
नगर नगरिया,
डगर डगरिया
क्यों कर सोई रे
चल बातें होई रे
रात सुहानी
न्न ना
रात सुहानी कैसे?
रात तो काली
खाली खाली
अंधियारा सब ओर हुआ
नगर नगरिया,
डगर डगरिया
क्यों कर सोई रे
चल बातें होई रे
रात तो काली
खाली खाली
स्लेट बनाओ
अपनी गाओ
सदियों का है आनाजाना
अपना गढ लो राज सुहाना
नगर नगरिया,
डगर डगरिया
क्यों कर सोई रे
चल बातें होई रे
अपने जी की
बात बतानी
कहीं कुंवर
कहीं है रानी
जो दिन में न जी पाए
वो रात कहानी जीनी है
हर बात हमारी जीनी है
दिल के अरमां शब्द बनेंगे
भाव भावना खेलेंगे
आंसू का दरिया बहुत हुआ
हंसी मिली बरसात की बारी
नगर नगरिया,
डगर डगरिया
क्यों कर सोई रे
चल बातें होई रे
हंस दे प्यारी रोना कैसा
कुंवर मिलेगा सोने जैसा
बोल उसे कैसे कर लाऊँ
टक टक घोड़े पर
या लाऊँ मैं मोटर कार
हर हुक्म तुम्हारा सर आँखों पे
मैं चुटकी में कर दू साकार
नगर नगरिया,
डगर डगरिया
क्यों कर सोई रे
चल बातें होई रे
सपनों को उड़ने की इच्छा
सपनों को साकार करूँ
कभी तैराऊ कभी मैं पर दू
शब्द उठाऊ जीवन भर दू
चुटकी में सब कुछ मैं कर दू
हिस्सा हिस्सा किस्सा गढ दू
: शशिप्रकाश सैनी
Comments
Post a Comment