ज़िन्दगी में वो मौज नहीं रही गुरु
बहुत दिन हो गए
कैमरा उठाया नहीं
इस कवी ने भी
कुछ ख़ास फ़रमाया नहीं
घाट चाट गलिया गंगा
यहाँ नहीं ना
न लस्सी मिली न रबड़ी
कचौरी मिली ना
कुछ दरख्तों से दोस्ती थी
मुलाक़ात रोज की थी
महुआ से आम से
पीपल से बोलते थे
यहाँ आदमी भी बोलता है
तो बोलता है काम से
क्या बोलेगा महुआ और आम से
ठठेरी भी छुटी
चेत भी छुटा
चेत भी छुटा
अस्सी का नजारा नहीं
न गलियों में शाम है
बस बड़ी बड़ी बिल्डिंगे है
हम मशीनों के गुलाम है
ज़िन्दगी में वो मौज नहीं रही गुरु
जब मर्जी का सूरज था
जब उठते जब चाहे
तभी होता था दिन शुरु
ज़िन्दगी में वो मौज नहीं रही गुरु
: शशिप्रकाश सैनी
Guru Jamaana badal gayaa, par yaadein nahi badli....
ReplyDeleteAccha likhte hai aap guru. aur aapne jo apna parichay diya hai, abhi thoda samay kam hai, so jyada nahi padha paaya, but jitna bhi padha acchha lagaa, apna sa lagaa..
guru aap chha gaye, humko aap bha gaye..
धन्यवाद गुरु
Delete