हम तुम और इंडीब्लॉगर
(इंडीब्लॉगर का
अनुभव)
होठो पे
हँसी मेरी जानते हो क्या है
इंडी मीट का अनुभव है
न कोई कारण दूसरा है
इंडी ने पुकारा ब्लॉगरो की फौज हुई
हम से मिले तुम क्या खूब मौज हुई
ज़िन्दगी के स्वाद में कारण तुम भी हो
इंडी तुम मेरी खिचड़ी में नमक हो
कभी मीठा हो थाली का
स्वाद ब्लॉगो का उतार जुबा तक लाया
गुलदस्ता सजाया लाया फुल हर डाली का
(कनेक्टेड हम तुम)
आइना
मेरा बोलने लगा तो क्या होगा
राज
खोलने लगा तो क्या होगा
आईने
से अपने डरता हू
की
ये जनता है मुझे
असली
शक्ल में कल को दुनिया न जान ले
और
ये छह औरते
अपना
आइना साँझा कर रही है
दुनिया
से न डर रही है
एक
पल को लगता है ये समझदार नहीं है
फिर
आता है ख्याल कितनी हिम्मत लगी
आम
आदमी की बुजदिली ही इसे आम रखेगी
खास
होने के लिए कुछ खासियत दिखानी पड़ेगी
जिंदगी
पे अपनी कैमरा लगाना आसान नहीं
हम
तुम जानते है
अपने
डर से डर भागा जाना कोई समाधान नहीं
स्क्रीन पे चल रहे थे कुछ
पल
जैसे अपनी ही हो जिंदगी
अपना ही हो घर
गुलामी स्क्रिप्ट की नहीं
अपनी ही जिंदगी को
अपने ही किरदारों में देखने
के लिए
कैमरा खड़ा था आईना बनकर
हम तुम क्या है
रोना है हँसना है
चिल्लना है छटपटाना है
हर पल अलग हैं
भाव है नए
हम तुम क्या हैं
अलग अलग कलेवर के इंसा
है
खासों खास से निकाल के
आज आम हुई
हम तुम जो लोकल में चलते है
बेस्ट की बसों में करते है
सफर
हम तुम भागती जिंदगी
मौका नहीं की देखे पलटकर
9 से 9
की शिफ्ट में क्या छुटा
जिंदगी
बेच आए है सौदा समझकर
वही
गलतियाँ ये भी करेंगे
छोटी
छोटी खुशियों पे मुस्कुराएंगे
और
चोट जो लगी तो आसूं बहाएंगे
असलियत
अपनी जो भूल बैठे हैं
असलियत
को असलियत देखगी
हँस
कर रो कर आंसुओ भिगो कर
हिम्मत भी चाहिए ज़ज्बा
भी
अपनी असलियत भला
दुनिया को दिखता है कौन
जब भीड़ घूरती हो बोलना
मुश्किल
आसा(आसान) है रहना मौन
तोड़
बेडियां समाज की क्यों रहे गुलाम
इन
छह औरतो को सलाम
: शशिप्रकाश सैनी
Very nice compisition
ReplyDeleteधन्यवाद राजवीर
DeleteLoved the lines :)
ReplyDeletefabulous...loved it :)
ReplyDeleteसराहना हेतु आभार करण
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