चले है पोटली भरी लिए
दो साल का खत्म हुआ सफर
हो गए है हम पुरे मनेजर
यादों के गुलदस्ते में
फूल कई लिए
हम बढ़े है जिंदगी नई लिए
यारो की यारी
इश्क-ए-खुमारी
चले है पोटली भरी लिए
चले अब चलना होगा
तस्वीरो में कविताओ में सजा के
पोटली बना के
यादो की
अब मै जा रहा हू
ये जिंदगी भी खूब रही
हॉस्टल वाली
रात भर जगे
कमरा कमरा चहके
जब भूख सताए
लंका जाए
चाय की चुस्की
बन मलाई खाए
अब रातो को
जब नीद नहीं आएगी
कमरे हमारे लिए खुलेंगे नहीं
वो दोस्त मिलेंगे नहीं
इसलिए मैंने कैद की
ये सारी जिंदगी
तस्वीरो में घोट के
पोटली भरी
की जब याद आएगी
खोलूँगा चखूँगा
रोऊंगा हँसूंगा
ये लम्हा फिर जियूँगा
खोलूँगा चखूँगा
रोऊंगा हँसूंगा
: शाशीप्रकाश सैनी
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