प्यार कम या हवस ज्यादा
मै हालात का मारा रहा
वो हालात की मारी रही
मैंने दिल की सुनी
दिल की कही
उस तक आवाज़ मेरी ना गई
आँखों में झांकी सही
पर रहा चश्मा वही
काली दुनिया काला रंग
दिल मेरा काला लगा
न मुस्कुराई न थपड पड़ा
चल दी मुह पे ताला लगा
इकरार तो इकरार कर
इंकार तो इंकार कर
इस पार कर उस पार कर
मत मुझे मझधार कर
मै नाव बनने को खड़ा हू
तू खुद को पतवार कर
इस बिगड़े हालत में
जहाँ प्यार कम हवस ज्यादा
कौन जाने क्या है मन में
क्या रहा उसका इरादा
प्यार था या हवस ज्यादा
यही सवाल दिल में पाले रह गई
तस्वीर असमंजस की संभाले रह गई
इसे क्या होगी किस्मत बुरी
हवस में हमें भी गिनने लगी
: शशिप्रकाश सैनी
बहुत ही सार्थक भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeletevery nice shashi...
ReplyDeleteregards
Mohit
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