खुद अपनी किस्मते बनाई हैं



सब कुछ माथे की लकीरों में नहीं हैं छुपा 
कुछ तो किस्मत हमने भी बनाई हैं
कभी पनपते सपनो को भट्टियो में झोखा हैं
कभी बुझती लौ के लिए आंधियों से जान लड़ाई हैं
कुछ तो किस्मत हमने भी बनाई हैं

जब अंधकार था धुत्कार थी 
जब हमसे रूठा संसार था 
अपने हौसलों पे जिंदगी जी हैं
जंगे अपनी अपने दम लड़ी हैं

इस तरह थे लड़े 
फिर ना ढलान थे ना चढाईयां थी
हौसलों से पाटी थी जमीं
फिर ना बची कोई खाईयां थी 

ये हौसला पैदाइशी हमारे लहू में आया हैं
कंकडो को पैरों तले दबाया हैं
कटीली झाडियों से रास्ता बनाया हैं
किस्मत बनाने के लिए इतना हैं लड़े 
की हमने जिंदगी जलाई हैं
तिनका तिनका ही सही 
पर हमने खुद अपनी किस्मते बनाई हैं

: शशिप्रकाश सैनी


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