इश्क हैं ज़रा सा




ये दिल भी हैं धडकता
आंखे भी हैं फड़कती
सर पे तेरा नशा हैं चढ़ा सा
की इश्क हैं ज़रा सा

इश्क की बदली हैं छाई
की एक गई तो दुझी आई
ढूढने से भी ना मिलेगी
मेरे दामन में तन्हाई
की ऊपरवाले ने
इस तरह से मोहब्बत बरसाई
की हो गयी मोहब्बत मेरी परछाई
की साया लगता हैं मुझे बदला सा
की मुझे इश्क हैं ज़रा सा

जो दिल से मिला हो गये उसके
न जात देखी न धर्म
बाहों में खो गये उसके
हाथ पकडे हैं हाथ मोडे
गालो पे कईयों के
हमने भी निशा छोडे

रीत जिंदगी की रीत ये बनाई
प्रीत हवाओ में हमने फैलाई
जो मीत मिला मनमीत हो गया
होठो पे थिरकता गीत हो गया

जिंदगी की बस ये कमाई हैं
की उसने दी हैं और
हमने मोहब्बत बरसाई हैं
दिलो में कईयों के
हम ने जगह बनाई हैं
रगों में नशा इश्क का
इस तरह भरा सा
की कई बार किया हैं हमने
इश्क ज़रा सा

: शशिप्रकाश सैनी

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