माँ, ये रंग होता क्या है ?
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माँ
पिंकू कहता है, कल होली है
वो रंग लाया है
लाल हरा पिला नीला
मुझे भी बुलाया है
माँ
ये रंग होता क्या है ?
ये होली क्या होती है ?
मैंने क्यों खेली नहीं अब तक ?
माँ, बताओं ना
लाल को लाल क्यों कहते है ?
हरे को हरा क्यों ?
क्या रंग तरल भी होता है ?
और ठोस भी ?
बरसात का भी कोई रंग होता है ?
रंगीन होती है ओस भी ?
माँ, मैंने सुना है
हर चीज का रंग होता है
तुम्हारा क्या रंग है ?
और मेरा क्या ?
क्या भईया का भी कोई रंग है ?
मुन्ना का भी ?
बताओं ना
माँ
किस स्वाद में आते है रंग ?
मीठे होते है, तीखे
या चटपटे ?
माँ बताओं ना
किस स्वाद में आते है रंग ?
माँ
क्या रंगों की भी कोई खुश्बू है ?
बताओं ना
गेंदे की महक जानती हूँ मैं
गुलाब की भी
किस महक से मिलती है, रंगों की खुश्बू
बताओं ना
माँ
ये काला किसे कहते है ?
सुना था सीढियों पे
पड़ोसियों से
मेरी जिंदगी का भी कोई रंग है काला
माँ
ये काला दिखता कैसा है
बताओं ना
माँ
तू रो रही है
तू रोती क्यों है
मैं मानू एक बहाना नहीं
आँसू बहाना नहीं
माँ
मैंने अब तक खेली होली क्यूँ नहीं ?
मैंने इतने किये सवाल
तू कुछ बोली क्यों नहीं ?
मुनिया
तू जो थिरकती है वो हरा है
जैसे घर अपना खुशियों से भरा है
जो तू मुस्काती है गुलाबी
नारंगी तेरी हाजीर जवाबी
नीला सुबह का संगीत सुरीला
सफेद ठंड की ठिठुरन
लाल गर्म हवाओं की चुभन
इंद्रधनुष में मिलते सात रंग
जैसे चिड़ियों की चहक
सोंधी मिट्टी की महक
उठती पहली बरसात संग
माँ
जा मेरे लिए बाजार से सब रंग ले आ
मैं भी कल होली खेलूंगी
सबको सब रंगों से रंगूंगी
भईया को मुन्ना को
पाप को तुम्हेँ
सबको रंगूंगी
किसी को ना छोडूंगी
माँ
और मुझे भी खूब रंगंना
सर से पैर तक
पूरा तरबतर रंगंना
बस एक शर्त है मेरी
जब भी कोई मुझे रंग लगाए
बताए मुझे
की मैं लगाती हूँ लाल
मैं लगाता हूँ पिला
बच मुझ से
मैं अबकी रंगने आई हूँ तुझे पूरा नीला
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
यहाँ Free ebook में उपलब्ध
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bohot hi sundar rachna.. har ek jazbaat ubhar ke aaye hain..
ReplyDeleteसराहना हेतु आभार Rhythm जी
DeleteShashi,
ReplyDeleteYou have written a beautiful poem here. When you said, I wrote a poem about a blind girl, my expectations soar high and you know what, I am very happy to read such a wonderful piece.
Keep writing for BAT. Good luck!
Someone is Special
आपको कविता अच्छी लगी दिल गदगद हो उठा
Deleteधन्यवाद सरव जी
Congrats Shashi :)
Deleteधन्यवाद सरव जी
DeleteAh, Shashi... how beautiful a poem :) That photo should have been at the end, would have given it a whole other side. Lovely one.
ReplyDeleteधन्यवाद लिओ जी
Deleteaapki kalam mei jadoo hai Shashiprakashji! mann ki aankhon se bhi rangon ko mehsoos kiya ja sakta hai...yeh baat dil ko choo gayi!
ReplyDeleteसराहना हेतु हार्दिक आभार
Deletehere comes another master piece by u shashi..beautifully wrtn n described in innocence and agony....marvolo..:)
ReplyDeleteसराहना हेतु आभार स्नेहा जी
DeleteAwesome sir....as usual
ReplyDeleteV miss u n poetry over here in BHU :(
धन्यवाद गरिमा
Deleteमैं भी BHU और बनारस को बहुत याद करता हूँ
मुंबई में हैं लेकिन मन वही छोड़ आए हैं
Two thumbs up :)
ReplyDeleteधन्यवाद दवे साहब
DeleteAankh bhar aayi Shashi! Khoob likkha hai aur dhanyavad is kavita padne ke liye pukarne ka kasht karne le liye
ReplyDeleteधन्यवाद सुरेश जी
Deletefirst of all....your entries make me read hindi once in a month...since its not my mother tongue....i dont get to read hindi otherwise...!!
ReplyDeletebeautiful post....emotions pleasantly captured..!!
All the best
My entry for BAT: Yamini Meduri-Color..!!!
धन्यवाद यामिनी जी
DeleteBahut sundar rachna, Shashi. It is really very hard for a blind person to understand colors.
ReplyDeleteसराहना हेतु आभार दिवाकर जी
DeleteBahot khoob Shashiprakash ji.
ReplyDeleteMann prasann hua choti bache ke maasum sawaal sun kar.
Umdaa.
धन्यवाद अनिमेष जी
DeleteDil ko chu gai aapki ye pyari si rachna...bohot hi sundar... :)
ReplyDeleteसराहना हेतु आभार सिमरन जी
DeleteBeautiful, sir. I always love reading your posts. This is the first post I am reading this BAT, and I love it. I wish I could write such a poem, would have been proud of myself.
ReplyDeleteतारीफ के लिए शुक्रिया क्षितिज जी
Deleteशशिप्रकाश जी, नागार्जुन जी की कविता याद आ गयी मुझे, " गुलाबी चूड़ीयाँ"....
ReplyDelete" प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है"...
बिल्कुल वही शैली मे आपने यह कविता लिखी है :)
सुंदर रचना, मन को छू गयी :)
हार्दिक शुभकामनायें!
आपको मेरी कविता ने नागार्जुन जी कविता याद दिला दी
ReplyDeleteये मेरा सौभाग्य
बहुत बहुत धन्यवाद श्रीजा जी
एक नेत्रहीन बालिका की रगों को देखने और समझने की जिज्ञासा का वर्णन अत्यधिक मार्मिक है और माँ द्वारा उसकी जिज्ञासा को सन्तुष्ट करना अकल्पनीय सुन्दर है।
ReplyDeleteThe description of a blind girl's curiosity to see and understand colours is very poignant, and the way her mother satisfies her curiosity is incredibly beautiful.
सराहना हेतु आभार विष्णु जी
DeleteVishnu Pratap Singh Chauhan
ReplyDelete"Main manu ek bahana nahi, aasu bahana nahi"
ReplyDeleteSuch touching lines Sashi Ji. This made me smile, this made my heart ache... It is all the magic of your beautiful beautiful poetry.
Loved this :)
धन्यवाद कीर्ति जी
Deletebahut sunder
ReplyDeleteतारीफ़ के लिए शुक्रिया
Deleteअहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
ReplyDeletevery heart touching Sir... I have no words... just love this... :)
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