रोटी का इंतजाम



"न घर कोई, न घर कोई, न घर कोई"
वो रुआसा रहा कटोरा लिए
कुछ तो सिक्के गिरे
दो रोटी का इंतजाम कुछ इस तरह होगा


"नगर कोई, नगर कोई, नगर कोई"
मन में उसके उमड़ते रहे ये शब्द
कंधे पे झोला लिए सामान का
चले वहाँ जहाँ फायदा होगा


" न डर कोई, न डर कोई, न डर कोई"
लाठी पटकता वो चिल्लाता रहा
नींद वालों को सुनाता रहा
उसकी रोटी का यही कायदा होगा


"न नर कोई, न नर कोई, न नर कोई"
वो समझाता रहा खुद को
हर हत्या के बाद
ऐसी रोटीयों का अंजाम क्या होगा


"न भर कोई, न भर कोई, न भर कोई"
गली गली घूमें चिल्लाए, पाप से दूर रह
पुण्य कमा, अपनी रोटीयां पुण्य में गिनाता है
झोला उसका आज पूरा भरा होगा


: शशिप्रकाश सैनी


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