रात को उलझाए रख "सैनी"


रात को उलझाए रख "सैनी" 
ये रात फिर आनी नहीं


आज जाम में नशा नहीं 
पलंग की सिलवटो में कोई कहानी नहीं


रात को उलझाए रख "सैनी" 
ये रात फिर आनी नहीं


तुझे बरगलाने को उम्मीद नहीं 
चारो ओर अंधेरा, ख्वाब आसमानी नहीं 


रात को उलझाए रख "सैनी" 
ये रात फिर आनी नहीं


दोस्त दुश्मन हमसाए कोई नहीं 
आज किसी पत्थर को फिर बात समझानी नहीं 


रात को उलझाए रख "सैनी" 
ये रात फिर आनी नहीं


कल की, कल की, कल की 
कल की क्यों बात करे 
बात करे आज की 
आज क्या जिया, कितना जिया
राज को राज रख "सैनी"
इस रात की बात किसीको बतानी नहीं 


रात को उलझाए रख "सैनी" 
ये रात फिर आनी नहीं


: शशिप्रकाश सैनी


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