आज फिर छला हैं तुने मुझे
आज फिर छला हैं तुने मुझे
मैं जगता रहा
नींद आँखों में आने न दी
और तू गुजर गई
आए ख्वाब कई
मैंने ख्वाबोँ से किनारा किया
ये वक्त तुम्हारा किया
और तू गुजर गई
दिन से नाराजगी की
तुम्हे मनाने में
जुगनुओं से दोस्ती की
तुम्हे मनाने में
बरबाद-ए-जिंदगी की
तुम्हे मनाने में
और तू गुजर गई
तेरी हर बात ने छला हैं मुझे
फिर इस रात ने छला हैं मुझे
नजर से उतरतें उतरतें
तू दिल से उतर गई
अंधेरा लकीरों में दे तो पूरा दे
ये भी क्या बात की
एक रात में गुजर गई
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