कुर्सी मोह में हम इतने न हो जाए अंधे
कुर्सी मोह में हम इतने न हो जाए अंधे
जिंदगी के हर रिश्ते को सीडी कर दे
जिंदगी को इतना न निचोड़े
कुछ जीने को जिंदगी उनको भी छोड़े
कल को रुकसत हो और जाने लगे
लोग अपने ही पराया न बताने लगे
आखिर में बड़ा कितना भी हो जाए सिकंदर
उसको भी चाहिए चार कंधों का सफर
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
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एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
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