चल गंगा पार चले
शोर शहर को छोड़ आए
अब की उस ओर जाए
जहाँ ताज़ी बयार चले
चल गंगा पार चले
बहोत चले अब तक
पीछे ही रहे कब तक
अब न उनकी कतार चले
चल गंगा पार चले
कोई सुनाई न दे
आवाज दूसरी
बस तेरी मेरी पुकार चले
चल गंगा पार चले
चल गंगा पार चले
जो ख्वाब जागती आँखों ने देखे
उस नींद से पहले सवार चले
अब की लहरों पे अपनी पतवार चले
चल गंगा पार चले
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
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अब न उनकी कतार चले
ReplyDeleteचल गंगा पार चले
...............Chalo saini ji humari bhi paar jaane ki bahut icchha hai
जब चलेंगे आपको भी ले चलेंगे
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