गर भलाई का बदला भला होता
गर भलाई का बदला भला होता
तो मेरा हाल न इस तरह होता
सुखी टहनीयों पे कोई चलाता नहीं पत्थर
पत्थर उन्हीं के लिए, जो फलों से लदा होता
मेरी छांव ने, जिन्हें पाला, जिन्हें पोसा
जड़ खोदने से पहले मुझसे कहा होता
अब की कुर्सी, पलंग, दरवाजा बना हूँ 'सैनी'
काश इस सावन भी, मैं झूला बना होता
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
यहाँ Free ebook में उपलब्ध
Comments
Post a Comment