अंतिम उजाला (नाटक)

कल्लू डोम- अरे मोहिनी बता बाबू को यहाँ क्या कर रही है तू, इनमें से कोई तेरा ग्राहक भी तो नहीं बन सकता फिर क्यों अपनी रात खराब करती है यहाँ बता !

वैश्या (मोहिनी)- मुझे अच्छा लगता है यहाँ इसलिए आती हूँ !  जिन्दों से घिन आती है  मुर्दे मुझे अच्छे लगतें हैं इसलिए आती हूँ !  वो जो उस तरफ हैं सब जानवर हैं हर रात नोची जाती हूँ मैं,  हाँ ! जानवर जरुर बदल जाता है और जो नहीं बदलती वो मेरी किस्मत वही रोज का नोचना खसोटना जारी रहता है

(वैश्या मुर्दे की तरफ मुह कर के जोर से बोलती है )


वैश्या (मोहिनी)- ले छू मुझे नोच ! मैं पैसे भी नहीं लूँगी तुझसे, अब तो छू  देख बाबू ये मेरी तरफ देखता भी नहीं, अब तू ही बोल कौन सी दुनिया अच्छी, ये दुनिया या वो दुनिया  फिर क्यूँ न आऊ इस शमशान पर

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पूरा नाटक यहाँ निशुल्क ई-बुक में उपलब्ध है 

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