धुआँ होना ही पड़ा
मेरा धुआँ तेरे धुएं से
अलग क्यों हैं
उसे समझाऊं मैं तो कैसे
तेरा खुशी का धुआँ
मेरा है आंसुओं का
फिर धुएं में नशा कैसे
ये मदहोशी कैसे
गम खुशी का धुआँ
जिंदगी का धुआँ
जब भी जला
जला है आरज़ू का धुआँ
कहीं चाहत में जले
कहीं रूसवाई में
जिंदगी सुलगती रही
हमको धुआँ होना ही पड़ा
आज लब पे हैं कि
उसको मेरी जरूरत है
काम निकला जो
हमें रूसवा होना ही पड़ा
होंठों पर जब रहे तो
प्यार था धुआँ
आंखों में चुभ रहा
जाने किसका धुआँ
धुआँ सभी का है
धुएं का यहाँ कोई नहीं
: शशिप्रकाश सैनी
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