अधर्मी है कविता
इस तक से उस तक
या पुस्तक की कविता
कहाँ से चली थी
कहाँ तक की कविता
मुझको छूई थी
तेरा दिल छूएगी
किस किस की धड़कन
समाई ये कविता
अर्थ अनर्थ
या व्यर्थ में बोली
बहरों में किसने
सुनाई ये कविता
मंचों पर चढ़ कर
उतर कर ना आई
सिफारिश कोई
ला पाई न कविता
न लाली न रंगत
न गोरापन
बदसूरत बड़ी थी
मनभाई न कविता
रोटी के सपने
रोटी की बातें
शब्द अपने बेचें
कमाई न कविता
हंसी ठिठोली
ताली पर ताली
लतीफ़ों को हमने
ओढ़ाई न कविता
हाँ चाहा था कभी
सुने लोग कविता
सुनाऊ मैं कविता
जा नहीं सुनाता
चने पर ये कवि
और नहीं जी पाता
मांस मदिरा सुट्टा लगेगा
अधर्मी कवि की
अधर्मी है कविता
: शशिप्रकाश सैनी
sundar rachna :)
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