दो आशीर्वाद विजयी भवः



रणभेरी हैं गूंज रही
रक्त रंजीत खड़े हिमगीरिवर
मिल्नोतसुक शत्रु हैं यही
कालकुठ बहता रगो में
हे माँ विभ्रंस होने दो
कृतांत का कहर टूटे
निर्दोष को न रोने दो
हे मातृभूमि
दो आशीर्वाद विजयी भवः

कुलिश काल बने कूल न रहे शेष
कूल न हो कोर न कोई
कपटियो का कौर होने दो
हे मातृभूमि
दो आशीर्वाद विजयी भवः

वह प्रमाद में खोया हैं
की महावीर अभी भी सोया हैं
स्वप्न हैं की याचक बने हम
जिधर देखे उधर हो तम
हे माँ हमे भी त्रिनेत्र होने दो
केसरी को न सोने दो
हे माँ विभ्रंस होने दो
फनी अब फन काड़े
विषधर विष से मरे
इसा बुजंग को कुचने दो
हे मातृभूमि
दो आशीर्वाद विजयी भवः

हर कोई अंगार बने
असुरो का हम काल बने
धरा या समीर हो
फैला दैत्यों का रुधिर हो
दूरमती की दूरगती हो
यम हम हो
हे माँ फिर लंका दहन होने दो
विधवंश होने दो
हे मातृभूमि
दो आशीर्वाद विजयी भवः


: शशिप्रकाश सैनी

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